वो दिन, क्या दिन!!
वो दिन, क्या दिन!! बचपन के वो निश्चिन्त दिन, संसार सिमटा हुआ एक टॉफी में, समय उलझा हुआ खेलने में, खाने में, खिलौनों की दुनिया ख़त्म होती नहीं थी, दिन शुरू, दिन ख़त्म, माँ के आँचल में. वो दिन, क्या दिन!! स्कूल के वो लौलीन दिन, बस्ते के अन्दर किताब, कलम और आशा, शरारत के दौर, टीचर ने चाहे जितना तराशा, दोस्ती बनने-टूटने के बीच एक अपना बेस्ट फ्रेंड, माँ ने बोलना सिखाया, लेकिन मातृ भाषा अब थी मित्रभाषा. वो दिन, क्या दिन!! कॉलेज के वो चमकीले दिन, हर दिन एक नया सपना देखती आँखें, आँखों के रस्ते दिल में उतरती उसकी आँखें, आशाओं की सिलेट पर लिखीं सफलता की कहानी, उन्मुक्त मन को कभी क़ैद ना कर पायीं नियमों की सलाखें. वो दिन, क्या दिन!! गृहस्थी के वो जवाबदेह दिन, जिम्मेदारी के बोझ से कंधे झुकते गए, क़र्ज़ के भार से निरंतर दबते चले गए, समरूपता बिठाते, स्वच्छंदता छिनी, बेड़ियाँ कसीं, गृह-बाह्य के ...