वो दिन, क्या दिन!!
बचपन के वो निश्चिन्त दिन,
संसार सिमटा हुआ एक टॉफी में,
समय उलझा हुआ खेलने में, खाने में,
खिलौनों की दुनिया ख़त्म होती नहीं थी,
दिन शुरू, दिन ख़त्म, माँ के आँचल में.
वो दिन, क्या दिन!!
स्कूल के वो लौलीन दिन,
बस्ते के अन्दर किताब, कलम और आशा,
शरारत के दौर, टीचर ने चाहे जितना तराशा,
दोस्ती बनने-टूटने के बीच एक अपना बेस्ट फ्रेंड,
माँ ने बोलना सिखाया, लेकिन मातृ भाषा अब थी मित्रभाषा.
वो दिन, क्या दिन!!
कॉलेज के वो चमकीले दिन,
हर दिन एक नया सपना देखती आँखें,
आशाओं की सिलेट पर लिखीं सफलता की कहानी,
उन्मुक्त मन को कभी क़ैद ना कर पायीं नियमों की सलाखें.
वो दिन, क्या दिन!!
गृहस्थी के वो जवाबदेह दिन,
जिम्मेदारी के बोझ से कंधे झुकते गए,
क़र्ज़ के भार से निरंतर दबते चले गए,
समरूपता बिठाते, स्वच्छंदता छिनी, बेड़ियाँ कसीं,
गृह-बाह्य के कर्तव्यों में उलझते चले गए.
वो दिन, क्या दिन!!
आजकल बस कटते रहते हैं दिन
समय-समाज की नांव पर बहते रहते हैं दिन
कभी लगता है क्या ऐसे ही ख़त्म हो जायेंगे मेरे दिन
दिन के साथ न्याय नहीं कर पाना प्रतिदिन
डरता हूँ यह अवसाद सालता रहेगा और कितने दिन
कुंठा लिए हुए ही, क्या मिल जाएगा मुझे मेरा
अंतिम दिन.
bahut acche...dil ko chu gayi...ek aur baat, aaj k din ki kimat samjhani chahiye kyunki kuch dino baad, inhi dino k liye hum taraste hain!!
ReplyDeletethanks. u r right about living in present, but somehow the nostalgia refuses to wither away.
Deleteदिन वही रहे, रंग बदल गये।
ReplyDeleteसर, फिर भी पता नहीं क्यों, पुराने दिनों के रंग ज्यादा चोखे, चटख होते हैं.
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ReplyDeleteNever knew u were so great a poet! Very nice compositions.. all of them.. r u really such a deep thinker? :-)
ReplyDeleteso true sir....wo beete din yaad aane lagte hain....aaj ka din bhi kal ke liye haseen hi hoga bas hum aaj ki keemat aaj nahi samajh paate.
ReplyDeleteGood work Vinamra. Living in fast lane, like now, when we dont have a moment to ourselves and friends, we yearn for those carefree days.
ReplyDeleteKeep up the good work
सब उस दिन की तलाश में घुट रहे , पर भागने से रुक नहीं रहे .
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मि. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए.
Deleteबीता हुवा समय हमेशा ही अच्छा लगता है ... पर उस समय कों वर्तमान बना दें तो उससे पहले का समय अचा लगता है ... ये तो जीवन की कशमकश है ...
ReplyDeleteकभी लगता है क्या ऐसे ही ख़त्म हो जायेंगे मेरे दिन
ReplyDeleteदिन के साथ न्याय नहीं कर पाना प्रतिदिन
डरता हूँ यह अवसाद सालता रहेगा और कितने दिन
कुंठा लिए हुए ही, क्या मिल जाएगा मुझे मेरा
अंतिम दिन.
बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,
RESENT POST ,,,, फुहार....: प्यार हो गया है ,,,,,,
धन्यवाद धीरेन्द्र जी!!
Deleteपोस्ट पर आने के लिये आभार,,,,
ReplyDeleteआप भी समर्थक बने तो खुशी होगी,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी......................
ReplyDeleteसुन्दर भावनाएं.....प्यारी अभिव्यक्ति.....
अनु