ख़ुद की खोज
ख़ुद की खोज
ऑफिस की फाइलों के पीले पन्नों में
मैं खुद को खोजता हूँ.
क्या पता खुश्क कागज़ पर काली-नीली स्याही
मेरे अस्तित्व का खाका खीच दे.
सड़कों के असंख्य गड्डों, छितराए पत्थरों में
मैं खुद को खोजता हूँ.
क्या पता किसी ठोकर, कोई झटका
मुझे मेरे निज से साक्षात्कार करा दे.
शहर के इमारतों के जंगल में
मैं खुद को खोजता हूँ.
क्या पता चटख शीशे, चमकती कांक्रीट से प्रतिवर्तित
कोई रौशनी मेरी आकृति का प्रतिबिम्ब दिखा दे.
रेल की निष्प्रभ, भावहीन पटरियों में
मैं खुद को खोजता हूँ.
क्या पता नदी, पर्वत, रेगिस्तान, बियावान, में मीलों दौड़ती हुई,
कहीं किसी ठौर पर मुझे स्वयं से मिला दे.
खुद को खोजने की यात्रा
नदी से समुद्र में जाते नाविक की तरह
जिसे क्षितिज दीखता तो है
लेकिन क्षितिज के आगे की दुनिया अबूझ है.
खुद को खोजने की यात्रा
चौराहे पर खड़े उस पथिक की तरह
जिसे पगडण्डी का मोड़ दीखता तो है
लेकिन घुमाव के आगे की पहेली अनसुलझी है.
खुद की खोज अबूझ दुनिया है,
अनसुलझी पहेली है, खुद की खोज.
खुद की खोज का सफ़र
अनवरत चलता ही रहेगा.
संभव है कि इस यात्रा को विराम
जीवन के ठहरने के साथ ही मिलेगा.
bahut khub.........kohj nirtar zari hae....ham sabki yahi halat hae..
ReplyDeleteखुद को खोजने की यात्रा
ReplyDeleteनदी से समुद्र में जाते नाविक की तरह
जिसे क्षितिज दीखता तो है
लेकिन क्षितिज के आगे की दुनिया अबूझ है...पर जानने की लालसा कहती है , कुछ तो है
yadi aap magazine mein khud ko chahte hain to sankshipt parichay ke saath yah rachna bhejen rasprabha@gmail.com per ...
ReplyDeleteवो दिन, क्या दिन!!
बचपन के वो निश्चिन्त दिन,
संसार सिमटा हुआ एक टॉफी में,
समय उलझा हुआ खेलने में, खाने में,
खिलौनों की दुनिया ख़त्म होती नहीं थी,
दिन शुरू, दिन ख़त्म, माँ के आँचल में.
वो दिन, क्या दिन!!
स्कूल के वो लौलीन दिन,
बस्ते के अन्दर किताब, कलम और आशा,
शरारत के दौर, टीचर ने चाहे जितना तराशा,
दोस्ती बनने-टूटने के बीच एक अपना बेस्ट फ्रेंड,
माँ ने बोलना सिखाया, लेकिन मातृ भाषा अब थी मित्रभाषा.
वो दिन, क्या दिन!!
कॉलेज के वो चमकीले दिन,
हर दिन एक नया सपना देखती आँखें,
आँखों के रस्ते दिल में उतरती उसकी आँखें,
आशाओं की सिलेट पर लिखीं सफलता की कहानी,
उन्मुक्त मन को कभी क़ैद ना कर पायीं नियमों की सलाखें.
वो दिन, क्या दिन!!
गृहस्थी के वो जवाबदेह दिन,
जिम्मेदारी के बोझ से कंधे झुकते गए,
क़र्ज़ के भार से निरंतर दबते चले गए,
समरूपता बिठाते, स्वच्छंदता छिनी, बेड़ियाँ कसीं,
गृह-बाह्य के कर्तव्यों में उलझते चले गए.
वो दिन, क्या दिन!!
आजकल बस कटते रहते हैं दिन
समय-समाज की नांव पर बहते रहते हैं दिन
कभी लगता है क्या ऐसे ही ख़त्म हो जायेंगे मेरे दिन
दिन के साथ न्याय नहीं कर पाना प्रतिदिन
डरता हूँ यह अवसाद सालता रहेगा और कितने दिन
कुंठा लिए हुए ही, क्या मिल जाएगा मुझे मेरा
अंतिम दिन.
Vinamra
http://vinspeaks.blogspot.in/ स्कूल के लौलीन दिन से क्या तात्पर्य है ?
कहीं तो अपने उत्तर मिलेंगे ही..कभी न कभी तो मिलेंगे ही...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteKhud mein hi khud ko paayengey shayad?
ReplyDeleteसड़कों के असंख्य गड्डों, छितराए पत्थरों में
ReplyDeleteमैं खुद को खोजता हूँ.
क्या पता किसी ठोकर, कोई झटका
मुझे मेरे निज से साक्षात्कार करा दे.
यू ही खुद को खोजते रहे कहीं न कहीं अपने को पा ही जाओगे,,,,,,
सुंदर प्रस्तुति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रुपये की औकात बता दी योजना आयोग ने - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteBeautiful :)
ReplyDeleteKhud ki khoj ho, yaa khudaa ki khoj ho,
ReplyDeletekitna mushkil kaam hai yeh, bus khudaa hi jaanta hai.
Yours truly
Shalender Birla
Very well written. In last picture, I thought it was Ashish Sharma!
ReplyDeleteKhud ki khoj mein, khuda ko khoj liya,
zindagi ke safar mein, apnon ko khoj liya.
Bachpan ki duniya mein, khushiyon ko khoj liya
Jawani ke aagosh mein, dil ko khoj liya
dhalti umr mein, bhulon ko khoj liya
aur aakhri padao mein, khud ko kho diya
Saari umr diya sirf ek baar aur liya har baar...shayad isi liye kabhi khud ko khoj nahin paaya.
bahut hi marmsparshi dhang se aapne chitraon ke madhyam se halataon ka sateek chitran kiya hai..
ReplyDeletesaarthak rachna prastuti ke liye aabhar!
वाह...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चाह......बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
जब तक खुद को खोजने की आस है तब तक जीवन है....
अनु
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति.
DeleteVin .... now the time has come to write full time and publish a book on hindi poetry by you...... nice work Excllnt!!
ReplyDeleteखुद कों खोजने के लिए अपने अनदार झांकना होगा ..
ReplyDeleteउम्दा रचना है ..
बढ़िया रचना,,,,,
ReplyDeleteपोस्ट पर आने के लिये आभार,,,,,,
वाह ....सुंदर रचना ...खोज जारी रहे ...
ReplyDeleteशुभकामनायें
आपकी कलम से लिखे गए हर शब्द ने शायद इसे पढने वाले के मन पर दस्तक दी होगी. अगर अपने लिए थोडा समय निकालेंगे तो खुद को शायद खोज सकें.
ReplyDeleteVery nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
Khud ki khoj sabse bdi khoj hai. For more information visit our blog post.
ReplyDeletehttps://myeyemyview1.blogspot.com/2020/04/khoj-khud-ki.html?m=1